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Wednesday, October 31, 2018

आहट

सरसराती हुई ये वादीयां 
जब तुम्हारा जिक्र करती हैं 

बारीश की बुंदोमें 
मैं तुम्हे खोजने लगती हूँ......

एक धुंदलासा कोई पत्ता
मेरी मून्द आंखोंको दिखता हैं

नमी सी आ जाती है आवाजमे
जब वो कहता है
हां, मैने देखा है उसे 
तुम्हारा नाम लेते हुए....

थरथराती हुई मेरी तनहाई
तब  सांस लेती है 

तुम्हारा खयाल ही तो है बस जहन में
और क्या कहूँ............

बस युंही...
तुम्हारी आहट की आदतसी हो गयी है अब

- नेहा लिमये 

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