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Saturday, October 27, 2018

रुबरू

ख्वाबोका एक काफ़िला
कभी मैनेभी सरमाया था
बंद मुठ्ठीमे रेत लेकर
वक्तके हांथो थमाया था

सुनेपनमें एक चिराग
कभी मैनेभी जलाया था
दबीसी एक सांस को
खुली हवासे मिलाया था

दुवाओंका एक मंजर
कभी मैनेभी बनाया था
गुजरे हुए एक लमहेको
कलके यकीनसे मिलाया था

मेरा न था जो कुछ वो
कभी मैनेभी अपनाया था
खुलीसी एक किताबको
दिलकी स्याहीसे सजाया था

गिला ना था कभी किसीसे
कभी मैनेभी ये बताया था
आईनेसे रुबरू होकर फिर
जिंदगीका गीत गाया था

- नेहा लिमये 

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