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Tuesday, October 30, 2018

दायरा

आँखोसे मुझे तकते हुए
तुम जो तलाशते हो खुदको
एक दायरा बन जाता है
तुम्हारे मेरे दरमियान

आँखे नम सी फिर और
वो  पिघलता हुआ मंजर
दायरेसे निकलता वो लमहा
कहीं थम जाये बस

मैं वो लमहा जी लू
दामन मे बटोर लू 
फिर लौट जाऊं
वही पुरानी भीड में
खुदको तुम्हारे पास छोड कर

मैं नही जानती
इस रिशते के मायने
ना कोई जूस्तजू है मुझे
ना ही कोई आरजू...
मैं तुम हूँ 
तुम मैं हो
बस , इतना काफी हैं जीने के लिये !

- नेहा लिमये 

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